मजदूर के हक़ का हो रहा है हनन -विश्व दिव्यमान दुबे.
पाण्डु से अनिल शर्मा की रिपोर्ट
पूरा विश्व मजदूर दिवस मना रहा है, मजदूरों के हक आज लोगों को याद आ रहा है . मजदूर का एक ही व्यक्तव्य है साहब हां मैं मजदूर हूं लेकिन मजबूर नहीं. मैं मजदूर हूं यह कहने में मुझे शर्म नहीं. अपने पसीना बहाकर खाता हूं. मैं मिटटी को सोना बनाता हूं. हां मैं मजदूर हूं और यह कहने में मुझे शर्म नहीं. आज दुनियाभर में मजदूर दिवस मनाया जा रहा है. आज के दिन को लेबर डे, मई दिवस, श्रमिक दिवस के नाम से भी जाना जाता है. पिछले 132 साल से अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जा रहा है. मजदूर दिवस का दिन ना केवल श्रमिकों को सम्मान देने के लिए होता है, बल्कि इस दिन मजदूरों के हक के प्रति आवाज भी उठाई जाती है. जिससे कि उन्हें समान अधिकार मिल सके. यह दिन एक मई का ही दिन था तब से खेतों, खानों, ऑफिसों में काम करने वाले तमाम मजदूर एक मई को अतंरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाते है. मजदूर एक ऐसा शब्द है जिसके बोलने में ही मजबूरी झलकती है। सबसे अधिक मेहनत करने वाला मजदूर आज भी सबसे अधिक बदहाल स्थिति में है। दुनिया में एक भी ऐसा देश नहीं है जहां मजदूरों की स्थिति में सुधार हो पाया है। दुनिया के सभी देशों की सरकार मजदूरों के हित के लिए बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी करती हैं मगर जब उनकी भलाई के लिए कुछ करने का समय आता है तो सभी पीछे हट जाती है। इसीलिए मजदूरों की स्थिति में सुधार नहीं हो पाता है। भारत में भी मजदूरों की स्थिति बेहतर नहीं है। हमारे देश की सरकार भी मजदूर हितों के लिए बहुत बातें करती है. बहुत सी योजनाएं व कानून बनाती है। मगर जब उनको अमलीजामा पहनाने का समय आता है तो सब इधर-उधर ताकने लग जाते हैं। मजदूर फिर बेचारा मजबूर बनकर रह जाता है। मजदूर अपने राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य में पलायन कर रहें है, उस ओर ध्यान किसी का नहीं हैं. आखिर मजदूर पलायन क्यों कर रहें है? मजदूर काम के लिए दर -दर भटक क्यों रहें है? मनरेगा में काम कर रहें मजदूर का डाटा करीब रजिस्टर्ड मजदूर 1000 से अधिक है तो पलायन करने वाले लोग कौन है ,सरकार हरेक वर्ष मनरेगा में मैंडेज में बृद्धि कि बात करती है एक आंकड़ा के मुताबिक पंचयात एक तिहाई मजदूर बाहर पलायन कर रहें है. इन सभी के जवाब एक ही है सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं का बेहतर ढंग से नहीं इम्प्लीमेंट किया जा रहा है.कहीं न कहीं पांचयती राज कि कड़ी मजबूत नहीं है. इसी कारण लोग पलायन करने पर मजबूर है. झारखण्ड में करीब 12 लाख अभी भी लोग मजदूर पलायन कर रहें है.अभी लोग दो वक्त की भोजन के लिए दर दर भटक रहें है. कई कारखानों में तो मजदूरों से खतरनाक काम करवाया जाता है. जिस कारण उनको कई प्रकार की बिमारियां लग जाती है। कारखानों में मजदूरो को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा, पीने का साफ पानी, विश्राम की सुविधा तक उपलब्ध नहीं करवायी जाती है। मालिको द्वारा निरंतर मजदूरों का शोषण किया जाता है, मगर मजदूरों के हितों की रक्षा के लिये बनी मजदूर यूनियनो को मजदूरो की बजाय मालिको की ज्यादा चिंता रहती है।
हालांकि, कुछ मजदूर यूनियने अपना फर्ज भी निभाती है मगर उनकी संख्या कम है। हमारे देश में मजदूरों की स्थिति सबसे भयावह होती जा रही है। देश का मजदूर दिन प्रतिदिन और अधिक गरीब होता जा रहा है। दिन रात रोजी-रोटी के जुगाड़ में जद्दोजहद करने वाले मजदूर को तो दो वक्त की रोटी मिल जाए तो मानों सब कुछ मिल गया। आजादी के इतने सालो में भले ही देश में बहुत कुछ बदल गया होगा। लेकिन मजदूरों के हालात तो आज भी नहीं बदले हैं तो फिर श्रमिक वर्ग किस लिये मजदूर दिवस मनाये।हर बार मजदूर दिवस के अवसर पर सरकारे मजदूरो के हित की योजनाओं के बड़े-बड़े विज्ञापन जारी करती है। जिनमें मजदूरों के हितों की बहुत सी बाते लिखी होती हैं। किन्तु उनमें से अमल किसी बात पर नहीं हो पाता है। देश में सभी राजनीतिक दलों ने अपने यहां मजदूर संगठन बना रखे हैं। सभी दल दावा करते हैं कि उनका दल मजदूरो के भले के लिये काम करता है।