चंदौली: अधिक उपज लेने के लिए रसायनिक खादों के प्रयोग से खेतों की उर्वरता लगातार घट रही है

। मिट्टी की मूल संरचना के प्रभावित होने के प्रति जिम्मेदार सजग नहीं हैं। बीते दो वर्ष से मृदा परीक्षण का कार्य ठप पड़ा है। प्रदूषण की मार व रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग मिट्टी के लिए घातक साबित हो रहा। इससे भूमि बंजर होने लगी है। इसका असर उत्पादन पर भी पड़ रहा। इससे अन्नदाता परेशान हैं।

जिले में 82 हजार से अधिक खेतों की मिट्टी का परीक्षण किया गया था। इनका परिणाम विपरीत आया था, तब कृषि विभाग ने मृदा के लिए आवश्यक पोषक तत्वों के बारे में अन्नदाताओं को जागरूक किया था। हद तक मिट्टी की सेहत में सुधार हुआ, लेकिन भूमि में प्राकृतिक पोषक तत्वों की कमी हो रही। नमूनों की जांच में पाया गया था कि मिट्टी में नाइट्रोज, जिक जीवांश कार्बन व फास्फेट तत्व की कमी है। इसका असर खेती पर पड़ रहा है।

 

 

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तत्वों की कमी से कैसे किसानों की आय होगी दोगुनी

आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विभाग के वरिष्ठ विज्ञानी डाक्टर आरआर सिंह ने बताया पौधों की बढ़त के लिए नाइट्रोजन की मात्रा सामान्य होना जरूरी है। इसके असमान होने से फसल की बढ़त कम होती है। मिट्टी के जिक का काम रोग प्रतिरोधक के रूप में होता है। इस तत्व की कमी से फसल में रोग लगने की आशंका बढ़ जाती है। कार्बन की कमी होने से फसल का विकास अपेक्षा अनुरूप नहीं होता है। फास्फेट फसल की जड़ों को मजबूत करता है, लेकिन इन तत्वों की कमी से अन्नदाताओं की आय दोगुनी नहीं हो सकेगी।

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मिट्टी में पोषक तत्वों की स्थिति जिले की मिट्टी में जीवांश कार्बन की मात्रा प्वाइंट दो से तीन मिल रही है। मानक के अनुरूप इसकी मात्रा प्वाइंट आठ होनी चाहिए। सल्फर 15 से 30 किग्रा है, जबकि प्रति हेक्ट

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