एसएमएस अस्पताल में चिकित्सा विज्ञान की ऐतिहासिक उपलब्धि

जयपुर 6 मई

एसएमएस अस्पताल में चिकित्सा विज्ञान की ऐतिहासिक उपलब्धि

दिल और फेफड़ों के पास स्थित किडनी से 5 सेंटीमीटर की पथरी (स्टैगहॉर्न कैलकुलस ) सफलतापूर्वक ऑपरेशन

 

जयपुर. चिकित्सा क्षेत्र में एक अद्भुत मिसाल पेश करते हुए सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज जयपुर के यूरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ नीरज अग्रवाल के नेतृत्व में एक अत्यंत दुर्लभ और जटिल स्थिति में पाई गई किडनी से 5 सेंटीमीटर बड़ा स्टोन एक ही चरण में सफलतापूर्वक निकाल कर चिकित्सा विज्ञान में नया इतिहास रच दिया है। यह ऑपरेशन न केवल तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण था, बल्कि इसे पूरी तरह से सुरक्षित और सटीक तरीके से पूरा करना अस्पताल की चिकित्सा विशेषज्ञता और समर्पण का प्रमाण है।
इस केस में सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि किडनी सामान्यतः पेट में पाई जाने की बजाय जन्मजात रूप से छाती (थोरेक्स) में स्थित थी। इस दुर्लभ अवस्था को इंट्राथोरेसिक किडनी (Intrathoracic Kidney) कहा जाता है, जो लाखों में एक बार पाई जाती है। इसमें किडनी फेफड़ों और दिल के करीब स्थित होती है, जिससे कोई भी सर्जरी करना अत्यंत जटिल और जोखिमपूर्ण बन जाता है। और इस किडनी में करीब 5 सेंटीमीटर से भी बड़ा स्टोन था , 35 वर्षीय इस महिला को देशभर के अन्य संस्थानों में उपचार से मना किए जाने के बाद इस चुनौतीपूर्ण केस को डॉ. नीरज अग्रवाल ने स्वीकार किया । और अपनी टीम के सहयोग से सफलता पूर्वक संपन्न किया। मरीज एवं उनके परिजनों ने डॉ. नीरज अग्रवाल और उनकी टीम के प्रयासों के लिए गहरा आभार व्यक्त किया | इस केस की शुरुआत अस्पताल के इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग द्वारा की गई। आधुनिक सीटी स्कैन (CT scan) की सहायता से विशेषज्ञों ने फेफड़ों के पास स्थित किडनी तक पहुंचने के लिए एक सुरक्षित मार्ग निर्धारित किया और पीसीएन (Percutaneous Nephrostomy) ट्यूब सफलतापूर्वक डाली। क्योंकि छाती की नसों, फेफड़ों और हृदय के पास किसी भी हस्तक्षेप में जोखिम अधिक होता है।
इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी की मदद से बनाए गए मार्ग का उपयोग करते हुए एसएमएस अस्पताल के यूरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. नीरज अग्रवाल और उनकी अनुभवी टीम ने उसी ट्रैक का उपयोग करते हुए Percutaneous Nephrolithotomy (PCNL) सर्जरी की। पीसीएनएल एक अत्याधुनिक तकनीक है जिसमें त्वचा के एक छोटे से छेद से किडनी में पहुंचकर स्टोन के टुकड़े करके विशेष यंत्रों से निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में सबसे अधिक चुनौती किडनी की असामान्य स्थिति और पास ही मौजूद महत्त्वपूर्ण अंगों को बचाना था।डॉ. अग्रवाल ने कहा, “यह केस चिकित्सा दृष्टिकोण से अत्यंत चुनौतीपूर्ण था। thoracic cavity में स्थित किडनी तक पहुंचना और 5 सेमी का स्टोन निकालना जोखिम से भरा कार्य था। लेकिन सही योजना, रेडियोलॉजी टीम का सहयोग और सटीक तकनीकी कौशल के कारण यह सफल हो पाया।”इस जटिल सर्जरी के दौरान एनेस्थीसिया विभाग की टीम — डॉ. वर्षा कोठारी, डॉ. अनुपमा गुप्ता और डॉ. सिद्धार्थ शर्मा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और एनेस्थीसिया के प्रबंधन को पूरी तरह सुरक्षित बनाया…!!

जयपुर से हेमंत दुबे की रिपोर्ट

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