बिरसा मुंडा ने फूका था अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल :- गोमती साय

Riport By-महेंद्र अग्रवाल

रायगढ़:- आदिवासी समाज के मसीहा स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर उनके योगदान का स्मरण कराते हुए सांसद गोमती साय ने कहा अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आदिवासियो के हितों की रक्षा करने वाले बिरसा मुंडा का योगदान कभी भुलाया नही जा सकता। बिरसा आदिवासी जनजातियो के लिए एक निडर शख्सियत के रूप मे स्थापित रहे। बंगाल, बिहार और झारखंड की सीमा से लगे क्षेत्रों में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया।एक युवा स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता के रूप मे स्थापित बिरसा मुंडा को 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशक्त विद्रोह के नेतृत्व के लिए याद किया जाता है.।15 नवंबर, 1875 को जन्मे बिरसा मंडा का बचपन माता-पिता के साथ एक गांव से दूसरे गांव में घूमने में बिता। भारतीय जमींदारों, जागीरदारों और ब्रिटिश शासकों के शोषण की भट्टी में आदिवासी समाज झुलस रहा था।तब बिरसा मुंडा लोगों के गिरे हुए जीवन स्तर को उठाने के लिए प्रयत्नशील रहे।उन्हे यह आभाष हुआ कि अत्याचारियों के खिलाफ संघर्ष कर उनके जंगल-जमीन का हक वापस दिलाने के लिए उन्हें संघर्ष का बिगुल फूंकना होगा। 1895 के दौरान उन्होंने आदिवासियो के हित की जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ी ।बिरसा मुंडा के आह्वान पर पूरे इलाके के आदिवासी उन्हे अपना मसीहा मानते थे। बिरसा मुंडा आदिवासी गांवों में घुम-घूम कर धार्मिक-राजनैतिक जागृति के जरिए मुंडाओं का राजनैतिक सैनिक संगठन खड़ा करने में सफल हुए। इसके बाद बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश नौकरशाही का जवाब देने के लिए एक आन्दोलन की नींव डाली. ऐसे में 1895 में बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों की लागू की गई जमींदार प्रथा और राजस्व व्यवस्था के साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ दी. उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी जंग का ऐलान किया। बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार इसलिए उठाया क्योंकि आदिवासियों का शोषण किया था। एक तरफ अभाव व गरीबी थी तो दूसरी तरफ इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1882 जिसके कारण जंगल के दावेदार ही जंगल से बेदखल किए जा रहे थे. बिरसा मुंडा ने इसके लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तौर पर विरोध शुरु किया और छापेमार लड़ाई की. कम उम्र में ही बिरसा मुंडा की अंग्रेजों के खिलाफ जंग छिड़ गई थी. लेकिन एक लंबी लड़ाई 1897 से 1900 के बीच लड़ी गई. इसके बाद 3 फरवरी 1900 के चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया। सांसद गोमती साय ने भगवान बिरसा मुंडा के योगदान का स्मरण करते हुए कहा कम समय में ही उनके निधन से बहुत से काम अधूरे रहे गए जिन्हे समय रहते हमे पूरा करना है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!