छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में संगीत नगरी खैरागढ़ रियासत के लोगो को जिंदगी को अपने अंदाज में जीने का रिवाज है।
छत्तीसगढ़ी बोली को और मीठे अंदाज में बोलने का अंदाज “हम जातही,हम खाब,चलो चली,सुतत हो जी” की शैली के वाहक खैरागढ़ की जनता को नगर में मौजूद रूक्खड़ स्वामी का आशीर्वाद प्राप्त है।
रूक्खड़ स्वामी का यहां के राजा को आर्शिवाद कि “जब तक मेरी मढ़ी तब तक तेरी गढ़ी” आज भी फलीभूत है यहां के राजपरिवार का आज भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन प्रणाली में प्रभाव है इसके अलावा और भी अनेक प्राचीन मंदिर हैं।
खैरागढ़ की पावन भूमि प्रारंभ से ही धार्मिक केंद्र रहा है तीन तरफ से नदियों और जंगलो से परिवृत होने के साथ ही चारों तरफ से मनोरम मंदिरों से घिरा हुआ यह नगर अपने मंदिरों के विषय में रोचक कहानियों को समेटे हुए है मां दंतेश्वरी,बीरेश्वर महादेव,रूक्खड़ स्वामी,शीतला मंदिर,बंबई बाज मंदिर,महामाया मंदिर,बर्फानी राम मंदिर और गोपीनाथ मंदिर आदि यहां के प्रसिद्ध मंदिर हैं।
इन मंदिरों में रूक्खड़ स्वामी का मंदिर सबसे अनोखा और चमत्कारिक माना जाता है इस मंदिर का वैदिक प्रमाण है रूक्खड़ बाबा के विषय में एक किवदंती प्रचलित है इसके अनुसार राजा टिकैतराय की सेवा से प्रसन्न होकर रूक्खड़ स्वामी यहीं निवास करने लगे और उन्होने राजा को आर्शिवाद दिया कि “जब तक मेरी मढ़ी तब तक तेरी गढ़ी” और उन्होने यहीं समाधि ले ली।
रूक्खड़ स्वामी का मंदिर पिपरिया नदी के तट पर स्थित है मंदिर वर्गाकार में ईट और सीमेंट से बना हुआ है यह मंदिर 3600 वर्ग फुट मे फैला हुआ हैं मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर है मंदिर के गर्भगृह में गोलाकार काला चक्के के समान एक बड़ा पिंड स्थिपित है कहा जाता है कि यही पिंड रूक्खड़ बाबा की भभूति से बना पिंड है उसके उपर चांदी का एक छत्र लगा हुआ है पिंड में दो चांदी के नेत्र लगे हुए हैं पिंड के स्वरूप को देखकर एक अलौकिकता का अहसास होता है प्रतिमाह बादाम को जलाकर बने राख को शुद्ध घी मिलाकर पिंड में चोला चढाया जाता है मंदिर के अहाते में ही धुनि कमरा है जहां पर अंखंड धूनि आज भी जलती रहती है।