स्वतंत्रता आंदोलन में जनजाति नायकों का योगदान

खटीमा 06 जून, 2023– राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने मंगलवार को सेवा प्रकल्प संस्थान, उत्तराखंड द्वारा आयोजित “स्वतंत्रता आंदोलन में जनजाति नायकों का योगदान” महोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि प्रतिभाग किया। इस दौरान उन्होंने परिसर में लगी स्वतंत्र संग्राम सेनानियों के चित्रों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समुदाय ने महत्वपूर्ण और महान योगदान दिया है। जनजातीय समाजों ने अपने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान शक्तिशाली और प्रभावशाली रूप से संघर्ष किया है।  जनजातियों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक संगठना को सशक्त किया।

जनजातीय समाजों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशक्त आंदोलन चलाए, गुड़िया सत्याग्रह, असहिष्णुता के खिलाफ संगठन किया और आर्य समाज, सनातन धर्म सभा जैसे आंदोलनों में भी अपना योगदान दिया।

वीर बिरसा मुंडा, सिद्धो और कान्हु मुरमु, झसिया भागत, रानी गैडी जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी जनजातियों ने अपने लोगों को विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ उठने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपनी जानों को न्यौछावर करते हुए उठाया और लोक विद्रोह के माध्यम से अपनी स्वतंत्रता को प्राप्त की।
उत्तराखण्ड में जब जनजातीय समाज की चर्चा होती है तो 5 मुख्य जनजातियां थारु, बुक्सा, जौनसारी, भोटिया एवं राजी समाज का जिक्र आता है। इन सभी जनजातियां द्वारा प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया जा रहा है।

जनजातीय समाज का प्रयास, सबका प्रयास, ही आजादी के अमृतकाल में बुलंद भारत के निर्माण की ऊर्जा है।  भारत सरकार ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाने का निर्णय लिया है, जनजातीय समाज के आत्मसम्मान के लिए, आत्मविश्वास के लिए, अधिकार के लिए, हम दिन-रात मेहनत करेंगे, जनजातीय गौरव दिवस इस संकल्प को दोहराने का दिन है।

आज हमारे देश के प्रथम नागरिक के रूप में श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जी, हमारी महामहिम राष्ट्रपति के रूप में ना सिर्फ जनजातीय समाज बल्कि पूरे देश का गौरव बढ़ा रही हैं, श्रीमती मुर्मु जी का जीवन हर भारतीय को प्रेरित करता है। उनके शुरुआती संघर्ष, उनकी समृद्ध सेवा और उनकी अनुकरणीय सफलता हर भारतीय के लिए गर्व करने के समान है। वह हमारे नागरिकों, विशेष रूप से गरीबों, वंचितों और दलितों के लिए आशा की किरण बनकर उभरी हैं। आज़ादी का ये अमृतकाल, आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का काल है। भारत की आत्मनिर्भरता, जनजातीय भागीदारी के बिना संभव ही नहीं है।

आदिवासी और ग्रामीण समाज में काम करने वाले ये देश के असली हीरो हैं। यही तो हमारे डायमंड हैं, यही तो हमारे हीरे हैं।प्राचीन काल से भारत के विभिन्न जनजाति समुदाय अपनी विशिष्ट जीवन शैली एवं संस्कृति का पालन करते आए हैं और इसी कारण उन्होंने अपना स्वाभिमान जीवित रखा है।

जनजातीय समाज ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने अपने सांस्कृतिक संपदा, सामाजिक संगठनों, नेतृत्व और संघर्ष के माध्यम से देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई। उनका योगदान हमारे देश की स्वतंत्रता के इतिहास में महत्वपूर्ण है और हमें हमेशा उनका सम्मान करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि एक राजकुमार (भगवान राम) के पुरुषोत्तम बनने में सबसे बड़ा योगदान जनजातियों का था। राज्यपाल ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि जनजातियों का सेना में भी बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि जनजातियों ने खेल से लेकर फौज तक सभी क्षेत्रों में कमाल किया है।


उन्होंने कहा कि अपने महापुरुषों, कला, संस्कृति को अच्छी तरह समझे और दुनिया को भी अपनी महान विरासत से परिचित कराएं। उन्होंने टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का अधिक से अधिक उपयोग करने पर भी बल दिया।
इस दौरान मुख्य विकास अधिकारी विशाल मिश्रा, अपर जिलाधिकारी जय भारत सिंह, उप जिलाधिकारी रविंद्र सिंह बिष्ट, तुषार सैनी, सहित डॉ.अग्रवाल, देव सिंह राणा, हरीश राणा, मलकीत सिंह राणा,सुश्री कामिनी राणा, सुhरेश चंद्र पाण्डेय, ओम प्रकाश राणा, डॉ.देव सिंह, संदीप राणा, सुश्री संजना राणा, सुश्री सुष्मिता राणा, डॉ.विवेक अग्रवाल, दान सिंह राणा, मधु राणा, ए.प्रिया आदि उपस्थित थे।

Report By-RamRaja Sharma

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