अनु ठाकुर, सोलन।
बालकों के बहुमुखी विकास में साहित्य का विशेष स्थान है और इसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का योगदान दिया है साहित्यकार डॉo प्रत्यूष गुलेरी जी ने।
उन्होंने बच्चों के लिए दादा दादी नाना नानी और माता पिता के मुख से बचपन में सुनी कहानियां अपनी एक पुस्तक में संग्रहित की वह 14 नवंबर को बाल दिवस के उपलक्ष्य में बच्चों से ही उस का लोकार्पण सादे तरीके से अपने निवास स्थान पर कराया।
हिंदी बाल कहानियां पुस्तक जिसमें उन्होंने बच्चों के लिए कालू बना मंत्री, गुरु घंटापाद, राजा की बकरी, भोलू की करामात, अनमोल सीख, आधी पूंछ वाला पीर जैसी रुचिकर कहानियां संग्रहित की हैं।
बाल दिवस के अवसर पर साहित्यकार प्रत्युष गुलेरी जी द्वारा रचित पुस्तक ‘बाल कहानियों का संग्रह’ का विमोचन करना, बहुत ही सराहनीय कदम है। बच्चे ही कल भारत के कर्णधार हैं, भविष्य हैं। उनकी मौलिक चेतना और बौद्धिक विकास में प्रेरक कहानियां, कविताएं और ऐतिहासिक प्रसंग महवपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
आज हमें बच्चों में नैतिक मूल्यों, संस्कारों और बौद्धिक स्तर को ऊँचा उठाने और विकसित करने की जरूरत है और इस कड़ी में प्रत्युष गुलेरी जैसे साहित्यकार अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।